Sunday, June 7, 2015

जानिये भारत भूमी के बारे मे विदेशीयो कि
राय
जरुर पढना----
1. अलबर्ट आइन्स्टीन - हम भारत के बहुत ऋणी
हैं, जिसने हमें गिनती सिखाई, जिसके बिना
कोई भी सार्थक वैज्ञानिक खोज संभव नहीं
हो पाती।
2. रोमां रोलां (फ्रांस) - मानव ने आदिकाल
से जो सपने देखने शुरू किये, उनके साकार
होने का इस धरती पर कोई स्थान है, तो वो है
भारत।
3. हू शिह (अमेरिका में चीन राजदूत)- सीमा पर
एक भी सैनिक न भेजते हुए भारत ने बीस
सदियों तक सांस्कृतिक धरातल पर चीन को
जीता और उसे प्रभावित भी किया।...
4. मैक्स मुलर- यदि मुझसे कोई पूछे की किस
आकाश के तले मानव मन अपने अनमोल उपहारों
समेत पूर्णतया विकसित हुआ है, जहां जीवन
की जटिल समस्याओं का गहन विश्लेषण हुआ
और समाधान भी प्रस्तुत किया गया, जो उसके
भी प्रसंशा का पात्र हुआ जिन्होंने प्लेटो
और कांट का अध्ययन किया,तो मैं भारत का
नाम लूँगा।
5. मार्क ट्वेन- मनुष्य के इतिहास में जो भी
मूल्यवान और सृजनशील सामग्री है, उसका
भंडार अकेले भारत में है।
6. आर्थर शोपेन्हावर - विश्व भर में ऐसा कोई
अध्ययन नहीं है जो उपनिषदों जितना उपकारी
और उद्दत हो। यही मेरे जीवन को शांति देता
रहा है, और वही मृत्यु में भी शांति देगा।
7. हेनरी डेविड थोरो - प्रातः काल मैं अपनी
बुद्धिमत्ता को अपूर्व और ब्रह्माण्डव्याप
ी गीताके तत्वज्ञान से स्नान करता हूँ,
जिसकी तुलना में हमारा आधुनिक विश्व और
उसका साहित्य अत्यंत क्षुद्र और तुच्छ जन
पड़ता है।
8. राल्फ वाल्डो इमर्सन - मैं भगवत गीता का
अत्यंत ऋणी हूँ। यह पहला ग्रन्थ है जिसे
पढ़कर मुझे लगा की किसी विराट शक्ति से
हमारा संवाद हो रहा है।
9. विल्हन वोन हम्बोल्ट- गीता एक अत्यंत
सुन्दर और संभवतः एकमात्र सच्चा दार्शनिक
ग्रन्थ है जो किसी अन्य भाषा में नहीं। वह
एक ऐसी गहन और उन्नत वस्तु है जैस पर सारी
दुनिया गर्व कर सकतीहै।
10. एनी बेसेंट -विश्व के विभिन्न धर्मों का
लगभग ४० वर्ष अध्ययन करने के बाद मैं इस
नतीजेपर पहुंची हूँ की हिंदुत्व जैसा
परिपूर्ण, वैज्ञानिक, दार्शनिक और
अध्यात्मिक धर्म और कोई नही !!

Saturday, March 7, 2015


होली -  होली का नाम लेते ही रंग रंगीला उत्सव आपके मन में आता है।  पर क्या मालुम है कि
इस त्यौहार को मनाने के पीछे हमारे सनातन ऋषि -मुनियो का क्या विज्ञान था , वह समयाभाव और अज्ञानता की वजह से लुप्त हो गया


जैसा क़ि आप जानते हैं कि हमारे देश में चार ऋतुएँ होती है , शरद ऋतु के अंत और ग्रीष्म ऋतू के
आरम्भ में फागुण  महीने में यह त्यौहार मनाया जाता है।  जो स्वरूप आज इस त्यौहार का है वह
प्राचीन काल नहीं था , और न ही रासायनिक रंगो का प्रयोग होता था।


सभी पड़े लिखे लोग जानते हैं कि यदि शरीर से उत्सर्जन पदार्थ नहीं निकालेंगे तब वह शरीर में
हानिकारक तत्व को पैदा कर देते हैं , और जब वह बाहर निकलते हैं तब बहुत कष्ट होता है।
शरद ऋतुओ में हमारी त्वचा से पसीना जो एक उत्सर्जन पदार्थ है रुक जाता है जिससे त्वचा के
रन्द्र यानि छेद रुक जाते है और जब बाहर के वातावरण का तापमान बढ़ जाता है तब त्वचा में
छोटे छोटे दाने दाने निकलने लगते है , जो बहुत कष्टकारी होते हैं , बच्चो में अक्सर चैत्र मॉस में
चेचक और खसरा भी इसी का परिणाम है।


इसी कष्टकारी पीड़ा को दूर करने के लिए हमारे ऋषियों ने होली नामक उत्सव को मनाने की
परम्परा का प्रारम्भ किया था ,


इसमें पूर्णिमा को चांदनी रात में आग जलाकर हवन करके वातावरण को इतना गर्म कर दिया जाता है कि शरीर से पसीना निकलने लगे और शरीर के रन्द्र खुल जाए , फिर क़िसी
भीगे कपडे से शरीर को साफ कर लिया जाता है।


अगले दिन टेसू /पलाश के फूल जो पहले दिन पानी में भिगो दिए जाते है उनको पिचकारी
की सहायता से एक दुसरे पर डालकर होली मनाते है जिसमे कपडे फूलो के रंग से काफी टाइम तक भीगे रहने की वजह से पसीना जो अम्लीय होता है और टेसू जो क्षारीय होता है ,
त्वचा को उदासीनीकरण कर देते हैं।  आपने देखा होगा कि घमौरियों के लिए भी केल्शियम
कार्बोनेट पाउडर लगाकर उदासीनीकरण करके (जो कि ठोस रूप में होता है ) त्वचा को
और नुक्सान पहुचाते है रंद्र को रोक देते हैं , जबकि तरल रूप में होली खेलकर हम पूरे साल में एक बार अपने शरीर की शुद्धि ही नहीं पूरे समाज को स्वस्थ रखते है , पर ध्यान रहे रासायनिक रंगो से नहीं।


देर से ही सही पर अपने ऋषियों की परम्परा को सनातन वैज्ञानिकता से जीवित रखिये
और सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय का सन्देश का दुनिया को दीजिये !